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Sister

दीदी तो मां जैसी  होती  है  और  उसका  प्यार  ममता ही होती  है  उसकी डाँट पापा जैसी  उसकी सलाह दादा जैसी  वो हमजोली  भी दोस्त जैसी होती है  उसकी बातें बिल्कुल मेरे मन जैसी होतीं  हैं  और उससे दूरी कुछ  ग्रहन जैसी  होती है  अखिर जो  सबकुछ पूरा  कर दे  जिसमें  हर रिश्ता हो  वो बहन ही तो होती  है  मेरी दीदी भी मुझे माँ जैसी लगती  है।                                      With love :)                                                       Your brother                                                        ...

रिश्ते : एक अहम हिस्सा

लोग  बदलते  हैं  और  रिश्ते  भी  और  हाँ  प्राथमिकताएं  भी   नहीं  बदलता कभी  तो  सिर्फ  अनुभव  रिश्ता  कैसा  चल  रहा   या  कैसा  होगा   तय  करता  नींव  कैसी  थी   कोई  मानवीय भाव  भी  थे  या  बस  जीवन  का बहाव था  कोई  आपसे  कभी  पूरा  मिला   या शायद कभी आधा  क्योंकि  वो  बस  बहाव  था   ना  थी  उसमें नींव और ना  ही कुछ  ज्यादा  कृपया रिश्ते  बनाएँ कम   निभाएं  ज्यादा।                         -  " शैल " स्मृति 

●LIFE

कभी कभी आकांक्षा ही आवश्यकता  बन जाती  है  ऐसे अवसर  जीवन बार बार  नहीं  परोसता यदि  आपको  यह  जीवन  ने  आज  परोसा है तो  जल्दी  से इसे  चट कर जाईये क्योंकि इसके बाद आपका पेट  नहीं  भरेगा, भरेगा आपका मन -संतुष्टि  से और वास्तव  में  जीवन  उसी  का जीवंत  है  जिसके  पास  संतुष्टि बनाने और परोसने वाली  रसोई उसके स्वयं  के  पास  है।                                               - ' SHAIL ' SMRITI

silence

हंसती रही  कभी रोती रही मौन के शोरगुल में  मैं दिन रात सोती रही ।                           © "शैल" smriti

मम्मी

कभी कभी तुम्हारा फेवरेट गाना सुनते हुए  कभी कभी तुम्हारी फेवरेट डिश बनाते हुए दिन के कई कोनों में अब भी टटोलती हूं मैं तुम्हें ज़िंदगी के इस आंख मिचौली के खेल में  अब भी खोजती रोज हूं मैं तुम्हें  कभी कभी जोर से हंसने के ठीक बीच में  कभी कभी सड़क चलते खूब ट्रैफिक और तेज हॉर्न  के कारण मेरे माथे की भींच में  कभी कभी हारी हुई मैं और मेरी खीझ में यूं ही अचानक  मेरी आंखों में तैर जाती हो तुम जब तक पकड़ने चलती हूं तुम्हें  खैर चली जाती हो तुम बीती जो बातें तुम्हारी साथ  उन्हें यादों में रोज समेटती हूं मैं तुम्हें मां ! समेटी हुई इस यादों की तकिया में रोज लेके सोती हूं  मैं तुम्हें ।                                © "शैल" स्मृति

कभी - कभी हम सभी !

ये शामें अनकही एक डर अंदर गुम कहीं चल पाऊं ना सही  उमंगे भी तमाम  पर डर है रह जाऊं ना यहीं यूं तो रुकती मैं नहीं पर अब भी हूं वहीं  मैं भागूं कुछ घड़ी  पर ठहरी सी रही  कह दूं क्या जो है सही जो फुरसत में रहो  तो सुनना तुम कभी चलो हंस दूं  पर मन खुश नहीं लेकिन गर चेहरे पर हो हंसी  मन कोई झांगेगा ही नहीं चलो चलते हैं फिर वहीं  जहां शायद मैं भी मैं नहीं ।                             "  शैल " स्मृति

क्या किया जाय ?

क्या किया जाय यूं ही हंस दिया जाय  या रो दिया जाय रुक लिया जाय या चल लिया जाय नहीं नहीं थोड़ा फिसल लिया जाय लाओ कुछ कर लिया जाय कुछ सुन लिया जाय  या कुछ सुना दिया जाय थोड़ा सा हंस बोल लिया जाय थोड़ा सा गुस्सा कि नर्म हुआ जाय इधर चला जाय  कि उधर चला जाय ठहर कर थोड़ा संभल लिया  जीवन को थोड़ा समझ लिया जाय  छोड़ो ज्ञान थोड़ा अल्हड़पन किया जाय नहीं नहीं थोड़ा सा उड़ लिया जाय गले तक भर कर कुछ खा लिया जाय नहीं नहीं चिड़ियों सा चुन लिया जाय अरे यार ! जब करने को हो इतना कुछ  तो आखिर क्या किया जाय इस पल को जी लिया जाय  या खुदमें थोड़ा खो लिया जाय छोड़ो दुनियादारी  हो गई है रात बस मन भर कर सो लिया जाय।।             " शैल " स्मृति