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Showing posts from April, 2021

Sister

दीदी तो मां जैसी  होती  है  और  उसका  प्यार  ममता ही होती  है  उसकी डाँट पापा जैसी  उसकी सलाह दादा जैसी  वो हमजोली  भी दोस्त जैसी होती है  उसकी बातें बिल्कुल मेरे मन जैसी होतीं  हैं  और उससे दूरी कुछ  ग्रहन जैसी  होती है  अखिर जो  सबकुछ पूरा  कर दे  जिसमें  हर रिश्ता हो  वो बहन ही तो होती  है  मेरी दीदी भी मुझे माँ जैसी लगती  है।                                      With love :)                                                       Your brother                                                        ...

मन

कोई तो सीधी रात चुन कभी तो कोई बात सुन ; क्यों चले तू रात दिन ऐ मन तेरी उधेड़ बुन  ऐ मन तेरी उधेड़ बुन । उठा पटक उठा पटक  हर रात तू जाए अटक ऐ मन तू कभी तो थक ; तू अपनी ही राग में  गाता है ना जाने कितनी धुन ऐ मन तेरी उधेड़ बुन  ऐ मन तेरी उधेड़ बुन । कभी उठे तू श्रृंग सा कभी तुझमें अथाह गर्त  क्यों तू इतना चले  ना जाने किससे तेरी शर्त ; हो जाए जीर्ण भले ही तन तू रहे सदा तरुन ऐ मन तेरी उधेड़ बुन  ऐ मन तेरी उधेड़ बुन ।                        ©   '  शैल ' स्मृति 

बचपन/childhood

कभी हंसी बिखरती  कभी मैं बिखर जाती  अगले ही पल लेकिन ज़िंदगी संवर जाती  गर सोते वक्त मां साथ सो जाती क्या हैं रिश्ते कैसे है उन्हें निभाना इन झमेलों से कोसों दूर इक जमाना वो अपना बचपन अनजाना  कभी रुकती  कभी ठहर जाती  अगले ही पल पंछी बन जाती  आसमां के तारे खुद गिनती और गिनवाती गर सोते वक्त मां भी आ जाती  क्या है छल क्या है दोष ना होता किसी बात का रोष स्वार्थ रहित,खुशियों का कोष वो अपना बचपन प्यारा दोस्त ।।                            © 'Shail' Smriti