भारतीय संस्कृति खुद में अनेक परंपराओं , आदर्शों , धूप छांव , ऊंचाई ,गहराई ना जाने क्या क्या समाहित किए हुए है । इसी असीम व्यापकता के साथ फैली भारतीय संस्कृति के सागर की एक लहर के रूप में हम आशीर्वाद की महत्ता को भी समाहित कर सकते हैं ।
आज हाई टेक्नोलॉजी के युग में शायद आशीर्वाद की महत्ता धीरे धीरे ही सही स्वयं में सिमटती नजर आ रही है । जहां hey, हैलो , whatsup जैसे शब्दों की प्रचलनीयता संबोधन कारक शब्दों के रूप में बढ़ी है वहीं इसने अपने साथ आशीर्वाद के दायरे को बखूबी समेटा है ।
किसी बुजुर्ग , अग्रज , मां , पिताजी के पैरों को छूने अथवा प्रणाम जैसे संबोधन कारी शब्दों के अभिवादन के बाद पीठ पर फेरते हुए उनके हाथ और मुंह से निकले सकारात्मक शब्द जैसे - खुश रहो, सदैव सन्मार्ग पर चलो , बड़े बनो आदि हममें अथाह ऊर्जा का संचार ही नहीं करते थे वरन् हमारे नैतिक मूल्यों से भी दिन प्रतिदिन हमें रूबरू करवाते थे ।
आशीर्वाद के परिणाम स्वरूप निकली सकारात्मक ऊर्जा के अस्तित्व को विज्ञान ने भी स्वीकारा है । आशीर्वाद के परिणाम स्वरूप हम फला व्यक्ति के ह्रदय से संप्रेषित ऊर्जा को ग्रहण करते हैं वहीं उस व्यक्ति से ह्रदय से जुड़ने में सक्षम होते हैं । अतएव हम मानवीय गुणों की अनुभूति भी कर पाते हैं ।
आशीर्वाद छोटी सी बात में सिमटी एक असीम गहराई की साधना है जो ना केवल हमें नैतिकता , मानवीय संवेदनाओं से जोड़ती है वरन् हममें निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सकारात्मक सोच एवं ऊर्जा का संचार कर मार्ग पर बढ़ते रहने को प्रेरित करती है।
अतः आप सभी को ' शैल ' स्मृति का प्रणाम ।।
© ' Shail ' Smriti
आपकी लेखनी की पहली पंक्ति ही अंतिम तक पढ़ने को विवश कर देती
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