Pollution
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"इन हवाओं में घुली फिज़ाओं से गर मुलाकात हो
फूलों के साथ मेरे भी खिलने की शुरुआत हो
धूप पड़ते पत्तों का दर्पण सा एहसास हो
फिर ओस की बूंदों से मेरा श्रृंगार हो
खेतों की हरियाली की चूनर मैं ओढूं
काली घटाओं को आंखों में मैं भर लूं
बारिश की छम - छम की पायल मैं पहनूं
महकी मिट्टी का इत्र मैं छिड़कूं
झरनों के कल - कल की चूड़ी मैं पहनूं
कोयल की कूक सी हर पल मैं चहकूं
श्वेत हंस पर जैसे धूप वैसी मै चमकूं "
कुछ ऐसे ही ख्वाबों के साथ प्रकृति रूपी नारी है अपनी निशा के सपनों में मगन
और भोर की आगोश में काले बादलों से भरा है गगन
अहा ! उसकी वेदना ! अब वो जाग गई ,
जागते ही असलियत से वाक़िफ होकर
अपने सुंदर ख्वाबों को सपनों में ही त्याग गई ।।
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- © SMRITI TIWARI
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