Sister

दीदी तो मां जैसी  होती  है  और  उसका  प्यार  ममता ही होती  है  उसकी डाँट पापा जैसी  उसकी सलाह दादा जैसी  वो हमजोली  भी दोस्त जैसी होती है  उसकी बातें बिल्कुल मेरे मन जैसी होतीं  हैं  और उससे दूरी कुछ  ग्रहन जैसी  होती है  अखिर जो  सबकुछ पूरा  कर दे  जिसमें  हर रिश्ता हो  वो बहन ही तो होती  है  मेरी दीदी भी मुझे माँ जैसी लगती  है।                                      With love :)                                                       Your brother                                                        ...

Be proud who you are

हम तो अपने अंदर लेके चलते हैं इक जहाँ
जो कलम में है कश्मीर तो लखनऊ कैसा ,दिल्ली कैसा?
जो हम न दें इस ज़िन्दगी को इतना इतराने की इज़ाज़त ,
तो कुछ खोने का गम कैसा ? कुछ पाने का रुआब कैसा ?
हम तो भाई शाह हैं अपने और अपनी दुनिया के ,
हमको तो यही लगता है जो हम न हों किसी महफ़िल में ,
तो उस महफ़िल का अर्ज कैसा ?
और
इरशाद कैसा?
                  -मेरी लेखनी से
स्मृति तिवारी

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